भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कुछ लोग / जया जादवानी

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:24, 6 नवम्बर 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= जया जादवानी |संग्रह=उठाता है कोई एक मुट्ठी ऐश्व…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बहुत सट कर बैठो फिर भी
उठकर चले ही जते हैं कुछ लोग
मंज़िल आने से पहले
यूँ अभी भी कसके पकड़ा हुआ है हाथ
यूँ अभी भी जगहें
दिखती हैं भरी हुईं।