राज निराज / अली सरदार जाफ़री
[ये अशआर मुम्बई के फ़सादा के ज़माने में लिखे गये]
सुना है बन्दोबस्त अब सब ब-अन्दाज़े-दिगर होंगे
सितम होगा, मुहाफ़िज़े-शहर<ref>शहर के रखवाले</ref> बेदीवारो-दर होंगे
सज़ाएँ बेगुनाहों को मिलेंगी बेगुनाही की
कि फ़र्दे-जुर्म<ref>अपराधों की सूची</ref> से मुज्रिम की मुंसिफ़ बेख़बर होंगे
फ़क़त मुख़बिर शहादत देंगे ऐवाने-अदालत में
फ़क़त तीरो-सिनाँ, शमशीरो-ख़ंजर मोतबर होंगे
सजाई जाएगी बज़्मे-अज़ा ईज़ा-रसानों से
कफ़न पहनाएँगे जल्लाद, क़ातिल नौहःगर होंगे
फ़लक थर्रा उठेगा झूटे मातम की सदाओं से
यतीमों और बेवाओं के आँसू बेअसर होंगे
रसन में माँओं और बहनों के बाज़ू बाँधे जाएँगे
शहीदाने-वफ़ा ए ख़ूँ भरे नैज़ों पे सर होंगे
मनाया जाएगा जश्ने-मसर्रत सूने खँदरों में
अँधेरी रात में रौशन चिरागे़-चश्मे-तर होंगे
जो ये ताबीर होगी हिन्द के देरीना<ref>पुराने</ref> ख़्वाबों की
तो फिर हिन्दोस्ताँ होगा न इसके दीदःवर होंगे