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नीली नदी की गाथा / अवतार एनगिल
Kavita Kosh से
हमारे शहर के बीचों-बीच
बहती थी
एक नीली नदी
नीली नदी लाँघ कर
वे आये---
वे आये और हमारे दिलों में
बीज कर चले गये
अपनी आवाज़ें,
अपने वचन,
और
अपने-अपने ध्वज
एक सुबह
हमने क्या देखा?
देखा कि लुप्त हो चुकी थी
हमारी नीली नदी
बहुत तलाशने पर भी
मिली नहीं कहीं
अब तो
हर सुबह
अंजलि में भरकर जल
ढूँढते हैं नदी
नदी जो थी,
नदी जो है
नदी जो न थी
न है
न
होगी
नगरजन अब
देते हैं पहरा
आवाज़ों,
वचनों
विचारों
और ध्वजों पर
जागते रात-दिन
भागते सुबह-शाम
बूझो तो भला,
कहाँ गई
नीली नदी
नगर के बीचों-बीच
बहती थी जो