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नयनों की रेशम डोरी से / सोहनलाल द्विवेदी

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रचना संदर्भरचनाकार:  सोहनलाल द्विवेदी
पुस्तक:  वासंतीप्रकाशक:  इंडियन प्रेस प्राइवेट लिमिटेड, इलाहाबाद
वर्ष:  पृष्ठ संख्या:  

नयनों की रेशम डोरी से
अपनी कोमल बरजोरी से।

रहने दो इसको निर्जन में
बांधो मत मधुमय बन्धन में,
एकाकी ही है भला यहाँ,
निठुराई की झकझोरी से।

अन्तरतम तक तुम भेद रहे,
प्राणों के कण कण छेद रहे।
मत अपने मन में कसो मुझे
इस ममता की गँठजोरी से।

निष्ठुर न बनो मेरे चंचल
रहने दो कोरा ही अंचल,
मत अरूण करो हे तरूण किरण।
अपनी करूणा की रोरी से।