भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अयोध्या में कुछ क़ब्रें / असद ज़ैदी

Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:20, 8 नवम्बर 2009 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

इस मलबे के पीछे कुछ दूर जाकर
नदी के उस तरफ़ कई क़ब्रें हैं
जिनमें दबी हैं कुछ कहानियाँ
ज़ंग लगा एक चिमटा
तांबे का प्याला
एक तहमद एक लाठी एक दरी
मेंहदी से रंगे बाल
2 X 3 इंच का नीले शीशे का
चमकदार टुकड़ा
और इसी तरह कुछ अटरम-सटरम

हर शै ख़ामोश
लेकिन अपनी जगह से कुछ सरकी हुई

हर शै, दम साधे,
हमारी तरह,
किसी इंतज़ार में।