सूनी इमारत 
कहीं कोई नज़र नहीं आता 
आती हैं दो आवाज़ें 
दर्द को बखानती एक 
सहलाती दूसरी 
कभी-कभी उड़ने वाले कबूतर 
फ़र्श पर घिसे जमें 
बींट के निशान 
आदमी डाक्टर की तरह 
राहत दे 
तो 
दुनिया में हस्पताल 
कम हो जाएं
मरहम में लिपट 
घाव भर जाएँ 
लोग घरों में सोएँ
छज्जों पर मंजन करते हुए 
दाना डालें
जीवन भरे छाती फुला 
डैने पसार काम पर उड़ जाएँ 
इमारतें गुज़रे ज़माने का 
निशाना बन खण्डहर खड़ी रहें