भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जाना तय है / इला कुमार

Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:52, 9 नवम्बर 2009 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

शाम होते ही लौट आई हूँ
चिडियों से होड़ लगाकर

वहां खाना और पानी नहीं है
बुभु क्षा या तितीर्षा का नामोनिशान नहीं

आकाश न जाने किसकी छाया के अन्दर उनींदा रहता है
उख की अदम्य लालसा अनवरत खीचती हुई
उतनी दूर जाकर सुख कहाँ पाऊँगी

निर्धूम ज्योति अभी भी अनंत कालखंडों की दुरी पर
हजारों साल पहले वेफ प्रतिबिम्बों टेल दबी हुई

बीच का समय शुन्य में मिला हुआ

जाना तय है