Last modified on 9 दिसम्बर 2006, at 03:31

आज है, कल हुई / उर्मिलेश

सम्यक (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 03:31, 9 दिसम्बर 2006 का अवतरण

रचना संदर्भरचनाकार:  उर्मिलेश
पुस्तक:  प्रकाशक:  
वर्ष:  पृष्ठ संख्या:  

आज है, कल हुई, हुई, न हुई

छांव हर पल हुई, हुई, न हुई


एक पहेली है ज़िंदगी अपनी

क्या पता हल हुई, हुई, न हुई


देह का फ़लसफ़ा बताता है

कल ये संदल हुई, हुई, न हुई


जो नदी तुझमें - मुझमें बह्ती है

उसमें कलकल हुई, हुई, न हुई


ये नुमाइश तो चार दिन की है

फिर ये हलचल हुई, हुई, न हुई


मानकर घास रौंद मत इसको

कल ये मखमल हुई, हुई, न हुई


जितना जी चाहे उतनी पी ले तू

फिर ये बोतल हुई, हुई, न हुई