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उनसे / महादेवी वर्मा
Kavita Kosh से
निराशा के झोंको ने देव!
भरी मानसकुंजों में धूल,
वेदनाओं के झंझावात
गए बिखरा यह जीवन फूल।
बरसते थे मोती अवदात
जहाँ तारक लोकों से टूट,
जहाँ छिप जाते थे मधुमास
निशा के अभिसारों को लूट।
जला जिसमें आशा के दीप
तुम्हारी करती थी मनुहार,
हुआ वह उच्छ्वासों का नीड़
रुदन का सूना स्वनागार।
हॄदय पर अंकित कर सुकुमार
तुम्हारी अवहेला की चोट,
बिछाती हूँ पथ में करुणेश!
छलकती आँखें हँसते होंठ।