भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

उसकी हँसी / आर. चेतनक्रांति

Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:41, 10 नवम्बर 2009 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

एक मर्द हँसा
हँसा वह छत पर खड़ा होकर
छाती से बनियान हटाकर

फिर उसने एक टाँग निकाली
और उसे मुंडेर पर रखकर फिर हँसा
हँसा एक मर्द
मुट्ठियों से जाँघें ठोंकते हुए एक मर्द हँसा

उसने हवा खींची
गाल फुलाए और
आँखों से दूर तक देखा
फिर हँसा
हँसा वह मर्द
मुट्ठियाँ भींचकर उसने कुछ कहा
और फिर हँसा
सूरज डूब रहा था धरती उदास थी ।