आशिक़ी में है महवियत दरकार।
राहते-वस्ल-ओ-रंजे-फ़ुरक़त क्या?
न गिरे उस निगाह से कोई।
और उफ़्ताद क्या, मुसीबत क्या?
जिनमें चर्चा न कुछ तुम्हारा हो।
ऐसे अहबाब, ऐसी सुहबत क्या?
जाते हो जाओ, हम भी रुख़सत हैं।
हिज्र में ज़िन्दगी की मुद्दत क्या?