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एक दिन आयेगा / आलोक श्रीवास्तव-२

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एक दिन आयेगा
जब तुम जिस रास्ते गुजरोगी
वहीं सबसे पहले खिलेंगे फूल

तुम जिन भी झरनों को छूओगी
सबसे मीठा होगा उनका पानी
जिन भी दरवाजों पर
तुम्हारे हांथों की थपथपाहट होगी
खुशियाँ वहीं आयेंगीं सबसे पहले

जिस भी शख्स से तुम करोगी बातें
वह नफ़रत नहीं कर पायेगा
फिर कभी किसी से
जिस भी किसी का कंधा तुम छुओगी
हर किसी का दुख उठा लेने की
कूवत आ जायेगी उस कंधे में
जिन भी आंखों में तुम झांकोगी
उन आंखों का देखा हर कुछ
वसंत का मौसम होगा

जिस भी व्यक्ति को तुम प्यार करोगी
चाहोगी जिस किसी को दिल की गहराइयों से
सारे देवदूत शर्मसार होंगे उसके आगे

चैत्र के ठीक पहले
पत्रहीन हो गये पलाश-वृक्षों पर
जैसे रंग उतरता है
ॠतु भींगती है भोर की ओस में
वैसे ही गुजरोगी तुम एक दिन
हमारी इच्छाओं, दुखों और स्वप्नों के बीच से

एक दिन आयेगा
जब हम दुखी नहीं होंगे तुम्हें लेकर
तुम्हें दोष नहीं देंगे
उम्मीदें नहीं पालेंगे
पर, सचमुच तुम्हें चाह सकेंगे
तुम भी महसूस कर सकोगी
हमारे प्यार का ताप ।