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एक स्वप्न के विरुद्ध / आलोक श्रीवास्तव-२

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आलोक श्रीवास्तव-२

तुम्हारी रातो मे यह किसका स्वप्न है?

खूबसूरत लॉन पर बिछी घासों में
आहिस्ता क़दम आता यह युवराज
बहुत मासूम लगता है
बहुत कोमल है उसकी अदायें

उसकी निगाहों में तुम्हारे लिये
दूर देश के नीले फूल
और दुर्लभ मणियाँ हैं

तुम देख नही पातीं
कोमलता के इस सारे तामझाम के बीच
क्रूरता का समूचा एक
जीवन-दर्शन पोशीदा है
पूरी एक मुकम्मल समझ
खु़शियाँ खरीदने की

तुम्हारी रातों में यह जिसका भी स्वप्न है
अथाह दरिया बन कर
भंवर और जल-गुंजलके बन कर
लिपटता ही जाता है
मेरे पावों से....