फूल सा कुछ कलाम और सही एक ग़ज़ल उस के नाम और सही उस की ज़ुल्फ़ें बहुत घनेरी हैं एक शब का क़याम और सही ज़िन्दगी के उदास क़िस्से में एक लड़की का नाम और सही कुर्सियों को सुनाइये ग़ज़लें क़त्ल की एक शाम और सही कँपकँपाती है रात सीने में ज़हर का एक जाम और सही (१९७०)