Last modified on 10 नवम्बर 2009, at 22:40

वह अपने हाथों से / उदयन वाजपेयी

Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:40, 10 नवम्बर 2009 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

वह अपने हाथों से
अँधेरे में खोई अपनी देह को
खोजती-खोजती सो जाती है थककर

अपने आलोक के झीने जाल में
धीरे-धीरे झूलता है ताम्बई चन्द्रमा

वह आईने के सामने खड़ी
सोचती है : आईना एक दीवार है
जहाँ से टकराकर हर बार गेंद की तरह
लौट आता है
मेरा ही चेहरा !