आकाश में घुलते-घुलते
पूरी तरह ग़ायब हो गया
चन्द्रमा
अँधेरे में
खाली मकान में न जाने कब से
मेज़ के पीछे छिपा है एक बच्चा कि
कोई उसे खेल-खेल में ढूँढे
छत पर खड़ी हो वह देखती है
दूर मकान में चमकती एक खिड़की
और सोचती है :
विरह प्रेम का अनन्त है ।