भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
दिन / उदय प्रकाश
Kavita Kosh से
एक सुस्त बैल
हाँफ रहा है.
उसके पुट्ठों पर
चमक रहा है पसीना
थके हुए नथुनों से
गिर रहा है
सफ़ेद झाग
सफ़ेद झाग
धीरे-धीरे
सारे मैदान में
जमा हो गया है.