नैन भरि देखि लेहु यह जोरी।
मनमोहन सुंदर नटनागर, श्री वृषभानु-किसोरी॥
कहा कहौं छबि कहि नहिं आवै, वे साँवर यह गोरी।
ये नीलाम्बर सारी पहिनें, उनको पीत पिछौरी॥
एक रूप एक भेस एक बय, बरनि सकै कवि को री।
’हरीचंद’ दोऊ कुंजन ठाढ़े, हँसत करत चित-चोरी॥
नैन भरि देखि लेहु यह जोरी।
मनमोहन सुंदर नटनागर, श्री वृषभानु-किसोरी॥
कहा कहौं छबि कहि नहिं आवै, वे साँवर यह गोरी।
ये नीलाम्बर सारी पहिनें, उनको पीत पिछौरी॥
एक रूप एक भेस एक बय, बरनि सकै कवि को री।
’हरीचंद’ दोऊ कुंजन ठाढ़े, हँसत करत चित-चोरी॥