Last modified on 13 नवम्बर 2009, at 20:39

आज है, कल हुई / उर्मिलेश

Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:39, 13 नवम्बर 2009 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

आज है, कल हुई, हुई, न हुई
छांव हर पल हुई, हुई, न हुई

एक पहेली है ज़िंदगी अपनी
क्या पता हल हुई, हुई, न हुई

देह का फ़लसफ़ा बताता है
कल ये संदल हुई, हुई, न हुई

जो नदी तुझमें - मुझमें बह्ती है
उसमें कलकल हुई, हुई, न हुई

ये नुमाइश तो चार दिन की है
फिर ये हलचल हुई, हुई, न हुई

मानकर घास रौंद मत इसको
कल ये मखमल हुई, हुई, न हुई

जितना जी चाहे उतनी पी ले तू
फिर ये बोतल हुई, हुई, न हुई