Last modified on 13 नवम्बर 2009, at 21:09

सोय रहि रति-अन्त रसीली / मतिराम

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:09, 13 नवम्बर 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मतिराम }} <poem> सोय रहि रति-अन्त रसीली, अनन्द बढ़ाय अ…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

सोय रहि रति-अन्त रसीली, अनन्द बढ़ाय अनंग-तरंगनि।
केसरि खौर करी तिय के तन, प्रीतम और सुवास के संगनि।।
जागि परि 'मतिराम' सरूप, गुमान जनावति भौंह के अंगनि।
लाल सौं बोलति नाहिंन बाल, सुयोंछति आँखि अंगोछति भंगनि।।


मतिराम का यह दुर्लभ छन्द श्री सुरेश सलिल के संग्रह से उपलब्ध हुआ है।