Last modified on 14 नवम्बर 2009, at 09:11

नैन भरि देखौ श्री राधा बाल / भारतेंदु हरिश्चंद्र

अजय यादव (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 09:11, 14 नवम्बर 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=भारतेंदु हरिश्चंद्र }} <poem> नैन भरि देखौ श्री राधा…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

नैन भरि देखौ श्री राधा बाल।
मुख छबि लखी पूरन ससि लाजत, सोभा अतिहि रसाल।
मृग से बैन, कोकिल सी बानी अरु गयंद सी चाल।
नख सिका लौं सब सहजहि सुंदर, मनहुँ रूप की जाल।
बृंदाबन की कुंज गलिन में, संग लीने नंदलाल।
’हरीचंद’ बलि बलि या छबि पर, राधा रसिक गोपाल॥