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कांच की सुर्ख़ चूड़ी / परवीन शाकिर

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काँच की सुर्ख़ चूड़ी
मिरे हाथ में
आज ऐसे खनकने लगी
जैसे कल रात शबनम लिक्खी हुई
तिरे हाथ की शोख़ियों को
हवाओं ने सुर दे दिया हो