Last modified on 14 नवम्बर 2009, at 22:02

लाल यह बोहनियाँ की बेरा / भारतेंदु हरिश्चंद्र

अजय यादव (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:02, 14 नवम्बर 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=भारतेंदु हरिश्चंद्र }} <poem> लाल यह बोहनियाँ की बेर…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

लाल यह बोहनियाँ की बेरा।
हौं अबहीं गोरस लै निकसी बेचन काज सबेरा।
तुम तौ याही ताक रहत हौ, करत फिरत मग फेरा।
’हरीचंद’ झगरौ मति ठानौ ह्वैहै आजु निबेरा॥