Last modified on 16 नवम्बर 2009, at 03:15

समय-1 / दुष्यन्त

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 03:15, 16 नवम्बर 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=दुष्यन्त }} {{KKCatKavita}} <poem> एक वक़्त था जब वक़्त की बिसा…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

एक वक़्त था
जब वक़्त की बिसात पर
एक तरफ़ तुम थे
एक तरफ़ हम
और बीच में थे मोहरे

एक वक़्त आज है
जब वक़्त की बिसात पर
तुम भी एक मोहरे हो
और मैं भी।

 
मूल राजस्थानी से अनुवाद- मदन गोपाल लढ़ा