भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
प्रेम-4 / दुष्यन्त
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 03:24, 16 नवम्बर 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=दुष्यन्त }} {{KKCatKavita}} <poem> कहते हैं आज भी जीवित है बोधि…)
कहते हैं
आज भी जीवित है
बोधिवृक्ष
खड़ा है वैसे ही
सदियों के बाद भी
हम-तुम
रहेंगे-न रहेंगे
हमारा प्रेम रहेगा
बोधिवृक्ष की तरह।
मूल राजस्थानी से अनुवाद- मदन गोपाल लढ़ा