यादों का समुद्र / मदन गोपाल लढा

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:53, 17 नवम्बर 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मदन गोपाल लढा }} {{KKCatKavita}} <poem> सचमुच बहुत अच्छा लगता थ…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

सचमुच
बहुत अच्छा लगता था
दोस्तों के साथ
तुमसे नेह का
बखान करते
सारी-सारी रात।

यह जुदा है
कि आज
मुँह पर लाना भी
पाप समझता हूं
वे कथाएँ।

मगर मेरा मन
अब तक नहीं भूला है
उन यादों के समुद्र में
गोता खाने का सुख।


मूल राजस्थानी से अनुवाद : स्वयं कवि द्वारा

इस पृष्ठ को बेहतर बनाने में मदद करें!

Keep track of this page and all changes to it.