भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

प्रिज़्म / परवीन शाकिर

Kavita Kosh से
द्विजेन्द्र द्विज (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:03, 17 नवम्बर 2009 का अवतरण (प्रिज्म / परवीन शाकिर का नाम बदलकर प्रिज़्म / परवीन शाकिर कर दिया गया है: सही शब्द प्रिज़्म है)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

पानी के इक क़तरे में
जब सूरज उतरे
रंगों की तस्वीर बने
धनक की सातों कौसें
अपनी बाँहें यूँ फैलाएँ
क़तरे के नन्हे से बदन में
रंगों की दुनिया खिंच आये
मेरा भी इक सूरज है
जो मेरा तन छूकर मुझमें
कौस-ए-कुज़ह के फूल उगाए
ज़रा भी उसने ज़ाविया बदला
और मैं हो गई
पानी का इक सादा क़तरा
बेमंज़र बेरंग