भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

एक दोस्त के नाम / परवीन शाकिर

Kavita Kosh से
Shrddha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 19:02, 18 नवम्बर 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=परवीन शाकिर |संग्रह=खुली आँखों में सपना / परवीन …)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

लड़की
ये लम्हे बादल हैं
गुज़र गए तो हाथ कभी नहीं आएँगे
इनके लम्स को पीती जा
क़तरा-क़तरा भीगती जा
भीगती जा तू जब तक इनमें नम है
और तेरे अन्दर की मिट्टी प्यासी है
मुझसे पूछ
कि बारिश को वापस आने का रास्ता कभी न याद हुआ
बाल सुखाने के मौसम अनपढ़ होते हैं