Last modified on 19 नवम्बर 2009, at 12:42

आग और बर्फ / रामधारी सिंह "दिनकर"

Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:42, 19 नवम्बर 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रामधारी सिंह "दिनकर" |संग्रह=नये सुभाषित / रामधा…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

कुछ कहते हैं, विश्व एक दिन जल जाएगा,
कुछ कहते हैं, विश्व एक दिन गल जाएगा।
मुझे दीखता, दोनों ही सच हो सकते हैं।
तृष्णा वह्नि है, जगती उसमें जल सकती है।
घृणा बर्फ है, दुनिया उसमें गल सकती है।