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आँसू / रामधारी सिंह "दिनकर"

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खिड़की के शीशे पर कोई बूँद पड़ी है;
अर्द्धरात्रि में यह आँसू किसका टपका है?
देख न सकता तुम्हें, किन्तु, ओ रोनेवाले!
रजनी हो दीर्घायु भले, पर, अमर नहीं है।
अरुण-बिन्दु-धारिणी उषा आती ही होगी।