भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
विनोबा / रामधारी सिंह "दिनकर"
Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:25, 20 नवम्बर 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रामधारी सिंह "दिनकर" |संग्रह=नये सुभाषित / रामधा…)
विनोबा रात-दिन बेचैन होकर चल रहे हैं,
अभी हैं भींगते पथ में, अभी फिर जल रहे हैं।
हमीं हैं खूब संध्या को निकल संसद-भवन से
किन्हीं रंगीनियों के पास मग्न टहल रहे हैं।