भारत / नये सुभाषित / रामधारी सिंह "दिनकर"
(१)
वृद्धि पर है कर, मगर, कल-कारखाने भी बढ़े हैं;
हम प्रगति की राह पर हैं, कह रहा संसार है।
किन्तु, चोरी बढ़ रही इतनी कि अब कहना कठिन है,
देश अपना स्वस्थ या बीमार है।
(२)
रूस में ईश्वर नहीं है,
और अमरीकी खुदा है बुर्जुआ।
याद है हिरोशिमा का काण्ड तुमको?
और देखा, हंगरी में जो हुआ?
रह सको तो तुम रहो समदूर दोनों की पहुँच से
और अपना आत्मगुण विकसित किये जाओ।
आप अपने पाँव पर जब तुम खड़े होगे,
आज जो रूठे हुए हैं,
आप ही उठकर तुम्हारे साथ हो लेंगे।
खींचते हैं जो तुम्हें दायें कि बायें, मूर्ख हैं।
ठीक है वह बिन्दु, दोनों का विलय होता जहाँ है,
ठीक है वह बिन्दु, जिससे फूटता है पथ भविष्यत का।
ठीक है वह मार्ग जो स्वयमेव बनता जा रहा है
धर्म औ’ विज्ञान
नूतन औ’ पुरातन
प्राच्य और प्रतीच्य के संघर्ष से।
जब चलो आगे,
जरा-सा देख लो मुड़ कर चिरन्तन रूप वह अपना,
अखिल परिवर्तनों में जो अपरिवर्तित रहा है।
करो मत अनुकरण ऐसे
कि अपने आप से ही दूर हो जाओ।
न बदलो यों कि भारत को
कभी पहचान ही पाये नहीं इतिहास भारत का।
(३)