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मन नहीं बदले अगर / कमलेश भट्ट 'कमल'

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कवि: कमलेश भट्ट कमल

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मन नहीं बदले अगर तो सिर्फ तन से क्या ?

आये दिन के कीर्तन से या भजन से क्या ?


जो उजाला या तपिश कुछ भी न दे जाए

वह जले या बुझ भी जाए, उस अगन से क्या ?


बन्दिशें ही बन्दिशें जब हों उड़ानों पर

पंछियों को फिर परों से या गगन से क्या ?


आपके घर में हवा है और ताज़ा है

आपको माहौल की गहरी घुटन से क्या ?


ज़हनियत का भी पता देते हैं खुद कपड़े

ज़हनियत मर जाए तो फिर तन-बदन से क्या ?


जब गरीबों का कहीं कोई न अपना हो

मुल्क की सारी व्यवस्था से सदन से क्या ?


जो अँधेरों की तरफदारी में शामिल हो

वह किरन भी हो अगर तो उस किरन से क्या ?