Last modified on 22 नवम्बर 2009, at 20:49

प्रेम में भी / जया जादवानी

गंगाराम (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:49, 22 नवम्बर 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= जया जादवानी |संग्रह=उठाता है कोई एक मुट्ठी ऐश्व…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

कितने तूफ़ानों को मैं देख नहीं पाई
चिथड़ा होने से पहले
कितने ज्वालामुखी फटे और
छुए बिना उन्हें मैं राख हो गई
कितने झंझावातों ने झिंझोड़ा
कितनी लहरों ने डुबा ही डाला
पलट दिया कितनी नावों ने ठीक धार के मध्य
रुको...रुको...सृष्टि के ओ चक्र
ले चलो मुझे कहीं भी
चक्र चलता रहना चाहिए
आओ मेरे समीप तो ठहरो
लेने से पहले ख़ुद पर
छू कर देख तो लूँ एक बार
मिटा जा सकता है क्या
प्रेम में भी इसी तरह...।