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आश्रय / जया जादवानी
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यह एक नया घर है
आह! मुझे आश्रय दो
गुहार की थके हुए पैरों ने
धरती से
चारों तरफ़ खिंची दीवारों से
खालीपन से जो रह गया था खाली
तरल हवा से
जो हो सकता है चाहती हो कहने से बचना
व्योम में जो पूरा था मेरे बिना भी
सम्भवतः
उस सबसे जिसमें मैं नहीं थी
पर जो था मुझमें
एक नामालूम कम्पन
एक हिलोर इस पार से उस पार तक
काँपी एक शाख विशाल वृक्ष की
चिड़िया के पैरों के आघात से
व्योम में एक और परिन्दा
अनगिन शाखों पर एक और पत्ता
अनाजों के ढेर में एक बाली अनाज की
अनगिन कंकणों में एक कंकण और
वे लेते हैं जैसे
प्रतीक्षा में हों आज तक मेरी ही...।