Last modified on 26 नवम्बर 2009, at 12:12

पोखरन 1998 -2 / लाल्टू

Rajeevnhpc102 (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:12, 26 नवम्बर 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=लाल्टू |संग्रह= }}<poem>गर्म हवाओं में उठती बैठती वह …)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

गर्म हवाओं में उठती बैठती वह
कीड़े चुगती है
बच्चे उसकी गंध पाते ही
लाल लाल मुँह खोले चीं चीं चिल्लाते हैं

अपनी चोंच नन्हीं चोंचों के बीच
डाल डाल वह खिलाती है उन्हें
चोंच-चोंच उनके थूक में बहती
अखिल ब्रह्मांड की गतिकी
आश्वस्त हूँ कि बच्चों को
उनकी माँ की गंध घेरे हुए है

जा अटल बिहारी जा
तू बम बम खेल
मुझे मेरे देश की मैना और
उसके बच्चों से प्यार करना है