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पत्थरों का शहर / कमलेश भट्ट 'कमल'
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रचनाकार: कमलेश भट्ट 'कमल'
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पत्थरों का शहर‚ पत्थरों की गली
पत्थरों की यहाँ नस्ल फूली फली
आप थे आदमी‚ आप हैं आदमी
बात यह भी बहूत पत्थरों को खली
एक शीशा न बचने दिया जायेगा
गुफ़्तगू रात भर पत्थरों में चली
खिलखिलाते हुए यक ब यक बुझ गई
पत्थरों के ज़रा ज़िक्र पर ही कली
जो कि प्यासे रहे खून के‚ मौत के
एक नदिया उन्हीं पत्थरों में पली