भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

पिता / लाल्टू

Kavita Kosh से
Rajeevnhpc102 (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:37, 26 नवम्बर 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=लाल्टू |संग्रह= }}<poem>वह गंदा सा चुपचाप लेटा है साफ…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

वह गंदा सा चुपचाप लेटा है
साफ सफेद अस्पताल की चादर के नीचे
मार खाते खाते वह बेहोश हो गया था
उसकी बाँहें उठ नहीं रही थीं ।

धीरे चुपचाप वह गिरा
पथरीली ज़मीन पर हत्यारों के पैरों पर ।

सिपाही झपटा
और उसका बेहोश शरीर उठा लाया
उसकी भी तस्वीर है अखबारों में
मेरे ही साथ छपी
मैं बैठा वह लेटा
चार बाई पाँच में वह पिता मैं बेटा ।