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उलझे प्रश्नो के जवाब की तरह / प्रदीप कान्त
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उलझे प्रश्नो के जवाब की तरह
जी रहे हैं हम तो ख्वाब की तरह
आज भी गुज़ारा कल ही की तरह
कल भी जी लेंगे आज की तरह
आवाज़ तो दो रूक जाएंगे हम
भले आदमी की साँस की तरह
उदास आँखों में बाकी है कुछ
किसी यतीम की इक आस की तरह
रूकती साँसों को गिन रहा हूँ मैं
किसी महाजन के हिसाब की तरह