औरत (छ:)
पेड़ का सच उस अमर बेल का सच नही होता जो उसके तने से लिपटकर बढ़ती है लहलहाती है उसका बढ़ना क्या लहलहाना क्या असल में उसका होना ही क्या. </poem>
औरत (छ:)
पेड़ का सच उस अमर बेल का सच नही होता जो उसके तने से लिपटकर बढ़ती है लहलहाती है उसका बढ़ना क्या लहलहाना क्या असल में उसका होना ही क्या. </poem>