Last modified on 1 दिसम्बर 2009, at 02:22

अब भी / शलभ श्रीराम सिंह

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 02:22, 1 दिसम्बर 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शलभ श्रीराम सिंह }} {{KKCatKavita‎}} <poem> छिपाने लायक कुछ भी …)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

छिपाने लायक कुछ भी नहीं है
फिर भी छिपाते जा रहे हैं हम
जैसे प्यार

तोड़ने लायक कुछ भी नहीं है
फिर भी तोड़ते जा रहे है हम
जैसे फूल

उठाने लायक कुछ भी नहीं है
फिर भी उठाते जा रहे हैं हम
जैसे आसमान

देने लायक कुछ भी नहीं है
फिर भी देते जा रहे हैं हम
जैसे जान

छिपाने के लिए बहुत-बहुत है नफरत
बहुत-बहुत अहंकार है तोड़ने के लिए
उठाने के लिए कम कहाँ हैं नैतिकताओं के बोझ
देने के लिए इम्तहानों की कमी कहाँ है
ज़िन्दगी में हमारी

रचनाकाल : 1993

शलभ श्रीराम सिंह की यह रचना उनकी निजी डायरी से कविता कोश को चित्रकार और हिन्दी के कवि कुँअर रविन्द्र के सहयोग से प्राप्त हुई। शलभ जी मृत्यु से पहले अपनी डायरियाँ और रचनाएँ उन्हें सौंप गए थे।