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उपहार / चंद्र रेखा ढडवाल

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 उपहार

धूप मेरे बरामदे की
एक दोपहर में
जाने कितनी बार मरती है
सफ़ेदे के पेड़ से लिपटी
झाड़ीनुमा कागज़ी फूल की
उस बेल के कारण कभी
जिसे मेरे पिता ने बोया था
मेरे पहले जन्मदिन पर
मेरे आँगन से लगे
आधी रोटी के-से आकार के
लोहे से बने उस गेट से कभी
जि मेरी कमाई का
पहला उपहार है
अपने पिता को.