Last modified on 1 दिसम्बर 2009, at 07:44

मुठभेड़ के बाद / चंद्र रेखा ढडवाल

द्विजेन्द्र द्विज (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 07:44, 1 दिसम्बर 2009 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)


मुठभेड़ के बाद

आसपास के सारे माहौल को
उसके सारी आकांक्षाओं
सफलताओं/ विफलताओं सहित
जी लेने की कोशिश
कोई बहुत बड़ा अभियान नहीं है
अगर तुमें यह सहूलियत हो
कि तुम किसी भी पेड़ को
आम का और पीपल का पेड कह
अपने मसीहा होने का आतंक फैला
उर्वरा मानस को मरुस्थल में बदल
रेत के पानी होने का भ्रम बनाए
बाँटते फिर सको
ताकि तुम से मुठभेड़ के बाद/ किसी में
ज़िंदा रहने की आकांक्षा के बावजूद जीने की
सामर्थ्य न रह जाए.