झांई / कुमार सुरेश
उन दिनों
बर्तनों पर कलई करने वाला आता था
रखे सायकिल के कैरियर पर
हवा फूँकने की हाथ की मशीन
झोले में कुछ कोयला और रसायन
आवाज़ लगाता था -‘कलई वाला’
पुकार ठंडी बयार की तरह
घुसती थी घरों में
पक्षियों की तरह बाहर
निकल आते थे बच्चे
कलई वाले के चारों ओर
मँडराते थे
गृहणियाँ ख़ुश हो जाती थीं
लेकर बदरंग बर्तन
घरों से बाहर निकल आतीं थीं
फिर शुरू होती थी
कलई वाले की कीमियागिरी
पीतल के बदरंग मटमैले बर्तन
रूई घुमाते ही चमचमा जाते थे
बर्तनों की चमक से ज्यादा
चमक जातीं थीं
कलई वाले की आँखें
चमकीले बर्तनों की मालकिनें
ख़ुश होतीं थीं
बदरंग को चमकीला बनाने वाले
आदमी के पास़ होने से
बच्चों के मन भी चमकते थे
इन दिनों
किसी को कलई कराने की
ज़रूरत महसूस नहीं होती
बर्तनों को चमकाने का काम
बंद कर दिया है
बदरंग को चमकाने वाले आदमी को
अब बच्चे नहीं पहचानते
कलई वाले की आँखों में अब
चमक नहीं
बदरंग बर्तनों की
झाँई तैरती है।