Last modified on 8 दिसम्बर 2009, at 15:42

बड़ी हुई धूप / शांति सुमन

Shrddha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:42, 8 दिसम्बर 2009 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

बड़ी हुई कुछ और धूप
ये तेवर निखरे जून के
उजले-उजले पंखों वाले
पाखी जैसे हों चून के

भरी हुई उजली दोपहरी
हुई छाँह पेड़ की छोटी
अब घर नहीं लौटते बच्चे
सिर पर रख कापी मोटी

बुखर गए बस्ते जैसे
सामान किसी परचून के
अक्षर-अक्षर नाच रही
आँखें जैसे हों तितली
सिर पर चढ़े मोर सी नाचे
चंचल पानी की मछली

हँस-हँसकर दुहरे होते वो
सपने उड़ते बैलून के
धीरे-धीरे दिन जाता है
रात कहीं से जल्दी
बाग हुए रस भरे अमावट
देह लगी जो हल्दी
बरफ चूसकर लेटे होंगे
खत पढ़ते पिछले जून के