मैं भूल गया यह कठिन राह|
इस ओर एक चीत्कार उठा, उस ओर एक भीषण कराह॥
मैं भूल गया यह कठिन राह|
कितने दुख, बनकर विकल साँस
भरते हैं मुझमें बार बार,
वेदना हृदय बन तड़प रही
रह रह कर करती है प्रहार;
यह निर्झर--मेरे ही समान
किस व्याकुल की है अश्रुधार!
देखो यह मुरझा गया फूल
जिसको कल मैंने किया प्यार!
रवि शशि ये बहते चले कहाँ, यह कैसा है भीषण प्रवाह!!
मैं भूल गया यह कठिन राह|