भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

तारे नभ में अंकुरित हुए / रामकुमार वर्मा

Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:23, 11 दिसम्बर 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रामकुमार वर्मा |संग्रह=चित्ररेखा / रामकुमार वर…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

तारे नभ में अंकुरित हुए।
जिस भाँति तुम्हारे विविध रूप
मेरे मन में संचरित हुए॥
यह आभा है क्या कुछ मलीन?
अपने संकोचन में विलीन--
पर दुग्ध-धार से किरण-गान
मुझसे मिल कर हैं स्वरित हुए॥
देखो, इतना है लघु विकास,
मेरे जीवन के आस पास।
पर सघन अँधेरे के समान ही
दूर दैन्य दुख दुरित हुए॥