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पर तुम मेरे पास न आये / रामकुमार वर्मा

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पर तुम मेरे पास न आये।
देखो, यह खिल उठी जुही
यौवन के विकसित अंग छिपाये,
निराकार प्रेमी समीर
आया है सौरभ-साज सजाये,
मैंने कितनी बार साँस के--
शत सन्देश स्वयं दुहराये,
तारे हैं अपने दृग तारों--
की धाराओं पर तैराये।
पर तुम मेरे पास न आये॥
कोकिल की कोमल पुकार ने
पुष्प-शरीर वसन्त बुलाये,
उषा-बाल की प्रभा देख
बादल ने कितने वेष बनाये!
मैंने कितने रूप रखे पर
क्या न तुम्हें वे कुछ भी भाये?
जीवन मे साँसों की गति से
कितनी हूँ मैं व्यथा छिपाये!
पर तुम मेरे पास न आये॥