इस जीवन में वे आये।
यह नीरस नभ है वृद्ध किन्तु
है उषा-बाल उसके समीप,
रजनी मलीन है सजे किन्तु
आशाओं के कितने प्रदीप,
विस्तृत सागर के अश्रुपूर्ण
उर में संचित है एक दीप,
स्वाती-शिशु मोती हृदय-रूप
ज्योतित करता है सरस सीप,
इस भाँति न जाने किस पथ से
वे मुझमें आज समाये!!