भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

स्मृति में रहना / मनमोहन

Kavita Kosh से
गंगाराम (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:10, 11 दिसम्बर 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार =मनमोहन }} {{KKCatKavita‎}} <poem> स्मृति में रहना नींद में रहन…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

स्मृति में रहना
नींद में रहना हुआ
जैसे नदी में पत्थर का रहना हुआ

ज़रूर लम्बी धुन की कोई बारिश थी
याद नहीं निमिष भर की रात थी
या कोई पूरा युग था

स्मृति थी
या स्पर्श में खोया हाथ था
किसी गुनगुने हाथ में

एक तकलीफ थी
जिसके भीतर चलता चला गया
जैसे किसी सुरंग में

अजीब जिद्दी धुन थी
कि हारता चला गया

दिन को खूँटी पर टांग दिया था
और उसके बाद कतई भूल गया था

सिर्फ बोलता रहा
या सिर्फ सुनता रहा
ठीक-ठीक याद नहीं